सावन के महीने में निकलने वाली कांवड़ यात्रा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। इस साल 11 जुलाई से कांवड़ यात्रा की शुरुआत होने जा रही है। इस दौरान श्रद्धालु दूर-दूर से पवित्र नदियों का जल भरकर अपने अपने स्थान पर जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं।
ऐसे में कांवड़ यात्रा के दौरान अक्सर देखने को मिलता है कि कांवड़िए भगवा वस्त्र पहने होते हैं। आखिर क्या है इसके पीछे का कारण? आइए जानते हैं।
कांवड़ यात्रा में भगवा रंग का वस्त्र क्यों पहना जाता है?
सनातन धर्म में भगवा रंग सेवा, त्याग, तपस्या और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस रंग को साधुओं और संन्यासियों का रंग भी माना जाता है। जो सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर भगवान के प्रति भक्ति में लीन होते हैं।
कांवड़ यात्रा में भगवा रंग का वस्त्र पहनना ये दिखाता है कि भक्त अपने जीवन की दैनिक गतिविधियों से ऊपर उठकर शिव की भक्ति में लीन हो गया है।
आध्यात्मिक शक्तियों के लिए जरूरी भगवा रंग
कांवड़ यात्रा के दौरान भगवा वस्त्र पहनना ये भी दिखाता है कि, कांवड़िए तपस्वी भाव में है और यात्रा के दौरान संयम, ब्रह्मचर्य के साथ सात्विकता का पालन भी करते हैं। यात्रा के दौरान भगवा रंग का वस्त्र भक्त के अंदर ऊर्जा, आत्मबल और आध्यात्मिक शक्तियों को भी बढ़ाता है।
कांवड़ यात्रा में भगवा वस्त्र अनुशासन और एकजुटता का प्रतीक भी होता है। ये रंग उन्हें एकता में बांधता है और उनमें सेवा, समर्पण और धार्मिक चेतना भाव को जागृत करता है।
भगवा वस्त्र धारण करने वाले कांवड़ियों के लिए कुछ नियम भी होते हैं। जिनमें मांस-मदिरा का त्याग करना, झूठ न बोलना और यात्रा के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना शामिल है।
कांवड़ यात्रा के दौरान भगवा वस्त्र पहनना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि सनातन धर्म से जुड़े लोगों के लिए भावनात्मक और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। ये रंग शिव और भक्त को आपस में जोड़ता है। इसके साथ ही भगवा रंग संकल्प, श्रद्धा और साधना का भी प्रतीक है।
