दैनिक मूक पत्रिका बिलासपुर. 1997 से लंबित विस्फोटक अधिनियम के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आरोपी हुन्नैद हुसैन की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है. सत्र न्यायालय द्वारा लगाए गए आरोपों के खिलाफ दायर इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की सिंगल बेंच ने साफ कहा कि आरोप तय करना अंतिम फैसला नहीं होता, बल्कि केवल आगे की सुनवाई के लिए एक कानूनी प्रक्रिया है.

28 साल से लंबित था मामला

यह मामला वर्ष 1997 का है. रायपुर निवासी हुन्नैद हुसैन, जो फर्म मेसर्स तैय्यब भाई बदरुद्दीन के भागीदार हैं, पर आरोप है कि उन्होंने बिना लाइसेंस वाले दो व्यक्तियों- दीपक कुमार और रामखिलावन को विस्फोटक सामग्री बेची थी. गुप्त सूचना पर छापेमारी में इन व्यक्तियों के पास से विस्फोटक बरामद हुए और पूछताछ में उन्होंने हुसैन की फर्म का नाम लिया.

आरोपी का पक्ष और अदालत की टिप्पणी

हुन्नैद हुसैन ने तर्क दिया कि जिन दस्तावेजों और गवाहियों के आधार पर उन पर आरोप तय किए गए, वे अधूरे थे और कुछ अहम गवाहों के बयान शामिल नहीं किए गए थे.
इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि आरोप तय करने के चरण में अदालत अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों की गहराई से जांच नहीं करती. केवल यह देखना होता है कि अभियुक्त के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का हवाला

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि केवल संदेह या प्रारंभिक बहस के आधार पर आरोप तय करने के आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता.

28 साल से स्थगित पड़े इस मामले में अब आगे की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. हाईकोर्ट ने साफ किया कि सत्र न्यायालय द्वारा आरोप तय करना पूरी तरह उचित था, और इसी के साथ आरोपी की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी.

By MOOK PATRIKA

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