दैनिक मूक पत्रिका/सुकमा-
सुकमा। बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में विकास की एक नई तस्वीर उभर कर सामने आई है। वर्षों तक माओवादी गतिविधियों का गढ़ रहे गांव पूवर्ती — जो कुख्यात नक्सली कमांडर हिड़मा का गृहग्राम माना जाता है — अब बेली ब्रिज के जरिए मुख्यधारा से जुड़ गया है। सिलगेर से पूवर्ती के बीच बने इस बेली ब्रिज के निर्माण को बस्तर में विकास की दिशा में ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।

ब्रिटिश सेना के अधिकारी डोनाल्ड बेली द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान डिजाइन किया गया यह बेली ब्रिज अब बस्तर के घने जंगलों में उपयोग में लाया जा रहा है। खास बात यह है कि यह ब्रिज भारी वाहनों की आवाजाही के लिए पूरी तरह सक्षम है, जिससे बारिश के मौसम में भी आवागमन बना रहेगा।
इस पुल के निर्माण से न केवल पूवर्ती, बल्कि इसके आसपास के पांच से अधिक गांवों को भी सीधा लाभ मिलेगा। स्थानीय निवासियों के लिए यह ब्रिज राहत का माध्यम बनेगा, वहीं सुरक्षा बलों के मूवमेंट को भी इससे गति मिलेगी।
नक्सल प्रभाव के बीच हो रहा निर्माण
गौरतलब है कि सिलगेर से पूवर्ती तक 64 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण कार्य बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) द्वारा किया जा रहा है, जिसकी लागत 66 करोड़ रुपये निर्धारित है। यह परियोजना केंद्र सरकार के विशेष रणनीतिक योजना के तहत चल रही है।
यह क्षेत्र लंबे समय से हिड़मा और उसके साथी देवा जैसे नक्सली कमांडरों का प्रभाव क्षेत्र रहा है। लेकिन हाल के महीनों में सुरक्षाबलों के कैंप खुलने और लगातार दबाव के चलते माओवादी बैकफुट पर आ गए हैं। ऐसे में इस ब्रिज का निर्माण न केवल रणनीतिक दृष्टि से अहम है, बल्कि यह इलाके में स्थायी शांति और विकास की उम्मीदों को भी बल देता है।
स्थानीय लोगों में उत्साह
बेली ब्रिज बनने के बाद अब पूवर्ती जैसे दूरस्थ और दुर्गम गांवों में आवश्यक वस्तुएं, स्वास्थ्य सेवाएं और शैक्षणिक संसाधन भी आसानी से पहुंच सकेंगे। स्थानीय ग्रामीणों ने इसे “विकास का पुल” बताते हुए प्रशासन और सरकार के प्रयासों की सराहना की है।