दैनिक मूक पत्रिका जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में स्वतंत्रता दिवस 2025 एक ऐतिहासिक पल बन गया, जब 29 नक्सल प्रभावित गांवों में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया गया। ये गांव लंबे समय से नक्सलियों के कब्जे में थे, जहां लोकतंत्र की जगह बंदूक का राज चलता था और काला झंडा लहराया जाता था। लेकिन सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाइयों, नए कैंपों की स्थापना और विकास योजनाओं के माध्यम से अब इन इलाकों में नक्सलवाद का प्रभाव लगभग समाप्त हो चुका है। ग्रामीणों ने हाथों में तिरंगा थामकर ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए और आजादी का जश्न मनाया। यह उपलब्धि न केवल सुरक्षा बलों की सफलता को दर्शाती है, बल्कि बस्तर में शांति और विकास की नई सुबह का प्रतीक है।

जिलेवार गांवों का विवरण और ऐतिहासिक महत्व

ये 29 गांव छत्तीसगढ़ के तीन जिलों- सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर में फैले हुए हैं, जो बस्तर संभाग का हिस्सा हैं। यहां नक्सलवाद तीन दशकों से अधिक समय से जड़ें जमाए हुए था, लेकिन 2025 में पहली बार इन गांवों में तिरंगा फहराया गया। जिलेवार ब्रेकडाउन इस प्रकार है:

  • नारायणपुर जिला (11 गांव): होरादी, गारपा, कछपाल, कोडलियार, कुटुल, बड़ेमाकोटी, पदमाकोट, कंदुलनार, नेलंगुर, पांगुर, रायनार। ये गांव नक्सलियों के सुरक्षित जोन माने जाते थे, जहां सुरक्षा बलों की पहुंच मुश्किल थी।
  • सुकमा जिला (7 गांव): रायगुडेम, तुमलपाड़, गोलकुंडा, गोमगुडा, मेट्टागुडा, उस्कावाया, मुलकाथोंग। सुकमा में नक्सल प्रभाव सबसे गहरा था, लेकिन अब यहां विकास कार्य तेजी से हो रहे हैं।
  • बीजापुर जिला (11 गांव): कोंडापल्ली, जीदपल्ली, वाटेबागु, कर्रेगुट्टा, पिडिया, गुंजेपार्टी, पुजारी कांकेर, भीमराम, कोरचोली, कोटपल्ली। पुजारी कांकेर को नक्सलियों का सबसे सुरक्षित क्षेत्र माना जाता था, लेकिन अब सुरक्षा बल यहां तक पहुंच चुके हैं।

इन गांवों में स्वतंत्रता के बाद पहली बार तिरंगा फहराया जाना एक बड़ा मील का पत्थर है, क्योंकि पहले नक्सली ग्रामीणों को धमकाकर काला झंडा फहराने के लिए मजबूर करते थे।

सुरक्षा अभियानों और नक्सलवाद पर काबू: आंकड़ों में सफलता

पिछले एक साल में सुरक्षा बलों ने इन इलाकों में आक्रामक अभियान चलाए, जिसके परिणामस्वरूप नक्सलवाद का प्रभाव कम हुआ। जिला रिजर्व गार्ड, बस्तर फाइटर्स, स्पेशल टास्क फोर्स, राज्य पुलिस की सभी विंग्स और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों ने पैट्रोलिंग और क्षेत्रीय वर्चस्व अभियान चलाए। सभी 29 गांवों में पुलिस कैंप स्थापित किए गए, जो सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ विकास कार्यों का आधार बने।

आंकड़ों से स्पष्ट है कि 2025 में नक्सलवाद के खिलाफ अभियानों में तेजी आई है:

  • बस्तर में कुल 320 सुरक्षा कैंप स्थापित हो चुके हैं, जिनमें से 2019 से 2024 तक 100 कैंप बने, और 2024 में अकेले 30 नए कैंप जोड़े गए।
  • 2025 में फरवरी तक 81 नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराया गया, जिसमें 31 एक ही अभियान में शामिल थे। कुल 80 से अधिक कथित माओवादियों की मौत हुई।
  • महिला नक्सलियों की मौतों में रिकॉर्ड वृद्धि: 2025 में 82 महिला माओवादियों को मार गिराया गया, जो 2001 के बाद सबसे अधिक है।
  • मुठभेड़ों की संख्या: 2023 में 69, 2024 में 123, और 2025 में अब तक तेजी से बढ़ रही है।
  • सरेंडर: कई नक्सली सरेंडर कर मुख्यधारा में लौटे, जैसे जनवरी 2025 में बिजापुर में 9 माओवादी, जिनमें 24 लाख का इनामी शामिल था।

ये अभियान ‘ऑपरेशन कागर’ जैसे प्रयासों का हिस्सा हैं, जो बस्तर में नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ने का लक्ष्य रखते हैं। सुकमा एसपी किरण चौहान ने कहा कि आंतरिक इलाकों में लगातार कैंप स्थापित हो रहे हैं, जिससे विकास परियोजनाएं संभव हुईं। नेल्लानार योजना के तहत सड़कें, बिजली, मोबाइल टावर और बुनियादी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं।

जश्न का माहौल और प्रमुख व्यक्तियों की भागीदारी

इन गांवों में ग्रामीणों ने उत्साह से स्वतंत्रता दिवस मनाया। सुरक्षा बलों की मौजूदगी में बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग तिरंगा थामकर नारे लगाते नजर आए। बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर के लाल बाग मैदान में केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू ने ध्वजारोहण किया, जबकि दंतेवाड़ा में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और जगदलपुर विधायक किरण सिंह देव ने हिस्सा लिया।

यह घटना बस्तर में शांति की वापसी का संकेत है, जहां अब विकास की गति तेज हो रही है। सरकार का लक्ष्य 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त करना है, और ये 29 गांव उस दिशा में एक बड़ा कदम हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अब वे बिना डर के जी सकते हैं और सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकते हैं।

By MOOK PATRIKA

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