प्रकृति के प्रति प्रेम व समर्पण का लोक पर्व है हरेली
दैनिक मूक पत्रिका दंतेवाड़ा – दक्षिण बस्तर अंचल के ग्रामीण क्षेत्रों में बीते शुक्रवार को हरियाली का पर्व हरेली अमुश त्योहार पारंपरिक रीति रिवाज के साथ मनाया गया । अल सुबह खेतों में तेंदु-खुटा गाड़ने के बाद किसानों ने देवी देवताओं व कृषि औजारों तथा मवेशियों की विधि विधान से पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना की ।
छत्तीसगढ़ संस्कृति की पहचान बन चुकी लोक पर्व हरेली त्योहार श्रावण मास के कृष्ण पक्ष के अमावस्या के दिन मनाया जाता है । हरियाली का पर्व किसानों के लिए खासा महत्व का होता है । इस दिन कृषि कार्य बंद रहते हैं कृषक अल सुबह उठकर नहा धोकर खेतों की और निकल पड़ते हैं और अपने अपनें खेतो में अमुश खुटा गाड़ते हैं ।अमुश खुटा तेंदू पेड़ के एक डंडे से बनाया जाता है इसकी ऊपरी भाग को बेलवा पत्ते में जड़ी बूटी जैसे कि शतावर व रचना पौधे की जड़ कंद को लपेटकर बांधा जाता है और इस अंमुश खुटे को खेतों के बीचो-बीच गाढ़ दिया जाता है।इसका तात्पर्य यह है की इससे खेतों में कीट प्रकोप नहीं लगता और खेत में अच्छी फसल होती है। अमुश खुटा गाड़ने के बाद कृषक घर लौट जाते हैं और अपने देव देवी की विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं इस दिन किसान अपने कृषि कार्य में प्रयुक्त कुदाली, फावड़ा, नागर,बसूला,बिंधना,हल एवं अन्य उपकरणों को धो -पोछकर घर के आंगन में दर्रा मिट्टी के ऊपर रखकर पूजा करते हैं । हरेली के दिन सुबह बैलों को नहलाकर लौंदी खिलाया जाता है। घरों में अच्छे-अच्छे पकवान बनाए जाते हैं।बड़े सुरोखी के किसान संतु कुंजाम ने बताया कि हरेली आम के दिन हम सभी किसान अपने कुल देवी देवताओं से यह प्रार्थना करते हैं कि हमारे खेतों में लगे फसल अच्छी हो, पशु निरोग रहे लोगों को किसी प्रकार की विपत्ति का सामना न करना पड़े । इस दिन सभी ग्रामीण गौ माता की पूजा करते हैं हरेली पर्व में गेडीँ का बहुत अधिक महत्व होता है बच्चे इस दिन गेडीं से चढ़कर इसका भरपूर आनंद लेते हैं कई जगह में गेडीं दौड़ प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है।