प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता और उपयोगिता आज भी बनी हुई है

दैनिक मूक पत्रिका जांजगीर चांपा – प्रेस क्लब चांपा के अध्यक्ष एवं संपादक कुलवंत सिंह सलूजा विगत चालीस वर्षों से भी अधिक समय से पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं .समय के साथ पत्रकारिता तथा पत्रकार संगठनों की भूमिका आदि को लेकर उनके दीर्घकालीन अनुभव को देखते हुए मेरी उनसे भेंटवार्ता हुई। भेंटवार्ता के आधार पर चर्चा के प्रमुख अंश पाठकों के सामने प्रस्तुत कर रहा हूं- अनंत थवाईत स्वतंत्र पत्रकार।
प्रिंट मीडिया (अखबार ) और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बीच अंतर और महत्ता पर चर्चा करते हुए कुलवंत सिंह सलूजा कहते हैं कि डिजिटल दुनिया के बीच भले ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया शीघ्र ही लोगों तक खबरें पहुंचाने का काम कर रही है लेकिन उसके बाद आज भी प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता और उपयोगिता बनी हुई है.प्रिंट मीडिया के साथी तथ्यों के आधार पर समाचार लिखते हैं.और आखिरी निर्णय पाठक पर छोड़ते हैं.जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार समाचार प्रसारण के साथ ही समाचार को लेकर खुद ही निर्णायक की भूमिका अदा कर बैठते हैं.दूसरे शब्दों मे कहा जाए तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अदालत की तरह भूमिका निभाते हुए दिखाई देती है जहां वह खुद ही पक्षकार , पैरवीकार, और न्यायाधीश के रुप मे अपनी भूमिका निभाते दिखाई देती है.और यह सब सबसे पहले खबर प्रसारण के चक्कर मे होता है.
चर्चा के दौरान “तब और अब” की पत्रकारिता (अखबारों) के प्रति अपना दृष्टिकोण रखते हुए कुलवंत सिंह सलूजा कहते है कि आजादी के पहले पत्रकारिता एक मिशन थी . अंग्रेजों के खिलाफ शंखनाद थी .कलम के सिपाही अपना सर्वस्व न्यौछावर करते हुए अखबार निकाला करते थे .शासक के विरुद्ध आवाज उठाना अखबारों की प्राथमिकता हुआ करती थी.स्वतंत्रता के बाद भी पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य शासन की खामियों को सार्वजनिक रूप से प्रगट करते हुए सरकार और जनता के बीच संवाद स्थापित करने हेतु एक सेतु के रुप मे कार्य करने की रही है .साथ ही यह कहना भी गलत नहीं होगा कि पत्रकारिता एक प्रकार से सत्ता की खामियों को उजागर करने के लिए एक सशक्त विपक्ष की भूमिका भी निभाते रही है. मिशन से मशीन तक का सफर करते हुए आज अखबारों के प्रकाशन मे भी बहुत कुछ बदलाव हो चुका है .देश दुनिया की खबरों के साथ साथ विज्ञापन के सहारे अखबारों का भी बाजारीकरण हो चुका है. आज जब एक नाई और दर्जी भी अपने कामों को लेकर स्पेशलिस्ट लिखते है. ठीक इसी तरह अखबारों मे भी प्रकाशन के लिए संपादकों और प्रबंंधकों को स्पेशलिस्ट प्रतिनिधि की जरुरत होती है यही कारण है कि आज अखबारों मे व्यवसायिक ,साहित्यिक , राष्ट्रीय नीति,विदेश नीति खेल , मनोरंजन , पर्यटन आदि विषयों के लिए अलग अलग प्रतिनिधि नियुक्त किए जाते हैं.
स्थानीय पत्रकारिता और राष्ट्रीय पत्रकारिता को आप किस ढंग से देखते हैं? इस सवाल पर कुलवंत सिंह सलूजा कहते हैं वैसे तो पत्रकारिता, पत्रकारिता ही होती है चाहे वह स्थानीय स्तर पर हो या राष्ट्रीय स्तर पर. लेकिन यदि इस संबंध मे विचार किया जाए तो यह कहा जा सकता है कि स्थानीय पत्रकारिता सूचनात्मक पत्रिकारिता होती है और राष्ट्रीय पत्रकारिता सृजनात्मक पत्रकारिता होती है . स्थानीय पत्रकारिता अपने आसपास होने वाले अपराधिक घटनाओं, विविध आयोजनों और नगर या जिले मे होने वाले विभिन्न गतिविधियों के समाचार होते है इसलिए इन्हें सूचनात्मक पत्रिकारिता कह सकते है लेकिन वहीं जब राष्ट्रीय पत्रकारिता की बात होती है तो वह वैचारिक दृष्टिकोण लिए होती है और राष्ट्रहित को ध्यान मे रखते हुए समाचार और विचार एक साथ पाठकों के सामने रखा जाता है और यही समाचार और विचार देश और समाज को आगे ले जाने के लिए सत्ताधारियों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं।
प्रेस को प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने के संबंध मे कुलवंत सिंह सलूजा कहते हैं कि हमारे देश की संवैधानिक व्यवस्था के तहत तीन प्रमुख स्तंभ है विधायिका ,कार्यपालिका और न्यायपालिका.लेकिन इन तीनों पर नजर रखने वाला हमारा खबरपालिका है . इसलिए खबरपालिका (प्रेस) को चौथा स्तंभ कहा जाता है . हालांकि संविधान मे “प्रेस के चौथे स्तंभ” के संबंध मे अलग से कोई विशेष बातें नहीं लिखी गई है.संविधान मे उल्लेखित “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकार” के तहत ही प्रेस अपनी भूमिका निभाते आ रहा है।
आप चालीस वर्षों से पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं और समय समय पर नगर मे पत्रकारों को संगठित करने के लिए प्रेस क्लब , पत्रकार संघ ,तहसील पत्रकार संघ , राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा, ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन आदि विभिन्न नामो से पत्रकार संगठन को सक्रिय किए हैं उसके बाद भी स्थानीय स्तर पर पत्रकारों के लिए अब तक प्रेस भवन क्यों नहीं बनवा पाए ? इस सवाल पर कुलवंत सिंह सलूजा कहते हैं कि मैंने हमेशा से ही स्थानीय और राज्य शासन से पत्रकारों के लिए प्रेस भवन निर्माण की मांग किया है .भूमि भी चयन करके शासन को प्रस्ताव भेजे गए हैं लेकिन कुछ न कुछ अड़चनें आ जाती है और फाइल सरकारी आफिसों मे घूमती रहती है . चांपा में पत्रकारों के लिए प्रेस भवन न बनने का एक कारण स्थानीय प्रशासन मे बैठे जनप्रतिनिधियों की उदासीनता है तो दूसरा कारण यह भी है कि स्थानीय पत्रकार साथियों के बीच संगठनात्मक तालमेल का अभाव भी है।
साक्षात्कार कर्ता, अनंत थवाईत, स्वतंत्र पत्रकार चांपा।

By MOOK PATRIKA

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