सावन का महीना हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। इसी के साथ पर्व-त्योहारों की दृष्टि से भी यह माह खास महत्व रखता है। सावन में कई महत्वपूर्ण व्रत-त्योहार पड़ते हैं, जिसमें मंगल गौरी व्रत भी एक है। मंगला गौरी का व्रत सावन महीने के प्रत्येक मंगलवार को रखा जाता है। 9 अगस्त को सावन समाप्त हो जाएगा और इससे पहले 5 अगस्त को सावन का आखिरी मंगला गौरी व्रत रखा जाएगा।
सुहागिन महिलाओं के लिए मंगला गौरी व्रत रखना वैवाहिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिनों को अखंड सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है। इसी के साथ संतान प्राप्ति की कामना के लिए भी महिलाएं यह व्रत रखती हैं। वहीं कुंवारी कन्याएं भी मनचाहे या सुयोग्य वर की कामना के लिए इस व्रत को रख सकती हैं।
माता गौरी को समर्पित है मंगला गौरी व्रत
मंगला गौरी व्रत माता गौरी यानी मां पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन व्रत रखकर विधि-विधान से पूजा करने पर मां अखंड सौभाग्य और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती है। इस साल सावन में कुल चार मंगला गौरी व्रत पड़े, जिसमें अंतिम मंगला गौरी व्रत 5 अगस्त को रखा जाएगा। यह व्रत सावन सोमवार के अगले दिन रखा जाता है।
बता दें कि मां मंगला गौरी आदि शक्ति देवी पार्वती का ही स्वरूप हैं। इन्हें देवी दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी के रूप में भी पूजा जाता है। कहा जाता है कि, सावन के महीने में शिव-पार्वती का वास पृथ्वी पर होता है। इसलिए सावन माह में शिवजी के साथ ही मां मंगला गौरी (मां पार्वती) की पूजा का भी महत्व होता है।
घर पर कैसे करें मंगला गौरी पूजन
स्नान- नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
संकल्प- पूजा आरंभ करने से पहले माता गौरी के सामने हाथ में जल, चावल और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें।
माता गौरी की स्थापना- एक चौकी में लाल रंग का कपड़ा बिछाकर माता गौरी की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
पूजा करें- मूर्ति के समक्ष घी का दीप जलाएं। माता को सिंदूर, अक्षत, पुष्प, अक्षत, पान, सुपारी आदि अर्पित करें।पूजा में सभी सामग्रियां जैसे- माला, फूल, लड्डू, फल आदि 16 की संख्या में चढ़ाएं। इसके बाद मां को सुहाग का सामान भी अर्पित करें और मिठाई और पकवानों का भोग लगाएं।
कथा और आरती- पूजा करने के बाद मंगला गौरी व्रत कथा सुनें या पढ़ें। कथा का पाठ किए बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। पूजा संपन्न होने और कथा का पाठ करने के बाद आखिर में आरती गाएं।
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