दैनिक मूक पत्रिका संपादक आशीष कंठले का विशेष रिपोर्ट रायपुर –
छत्तीसगढ़ में संविदा नियुक्तियों को लेकर एक बार फिर विवाद गहराता जा रहा है। राज्य प्रशासनिक सेवा संघ (CASA) ने जिलों में संविदा पर अपर कलेक्टरों की नियुक्ति को अनुचित बताते हुए इसे तत्काल समाप्त करने की मांग की है। इस पूरे विवाद का केंद्र बना है बेमेतरा जिला, जहां हाल ही में किए गए कार्यविभाजन ने प्रशासनिक हलकों में हलचल मचा दी है।

संविदा अधिकारी को सौंपा गया वित्त और राजस्व न्यायालय का जिम्मा
1 सितंबर को बेमेतरा कलेक्टर द्वारा जारी कार्यविभाजन आदेश में एक संविदा अधिकारी को न केवल जिले के प्रमुख वित्तीय विभागों का जिम्मा सौंपा गया, बल्कि राजस्व न्यायालय जैसे महत्वपूर्ण दायित्व भी उन्हें दे दिए गए।
नियमानुसार, यह कार्य केवल नियमित अधिकारियों को ही सौंपा जाना चाहिए। ऐसे में एक संविदा अधिकारी को इतनी बड़ी जिम्मेदारी देना सेवा नियमों की सीधी अवहेलना माना जा रहा है।

संविधान और सेवा नियमों की अनदेखी
संविधान और सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) के नियम स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सेवानिवृत्त अधिकारियों की संविदा नियुक्ति केवल अपवादस्वरूप और सीमित समय के लिए ही की जा सकती है।
लेकिन विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि एक रिटायर्ड राज्य प्रशासनिक सेवा अधिकारी को चौथी बार संविदा पर नियुक्त करने की सिफारिश की गई है। इस अनुशंसा में जिला कलेक्टर, एक वरिष्ठ मंत्री और GAD सचिव की भूमिका को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

फाइल पहुँची मुख्यमंत्री कार्यालय तक, CASA नाराज़
संविदा नियुक्ति की यह फाइल अब सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) तक पहुँच चुकी है। सूत्रों का कहना है कि इस पर अब “सुशासन बाबू” के निर्णय का इंतजार है।
इस बीच छत्तीसगढ़ प्रशासनिक सेवा संघ (CASA) ने GAD सचिव को लिखित रूप से आपत्ति दर्ज कराई है। परन्तु, जानकारी के अनुसार विवादित अधिकारी की सचिव से ‘बंद कमरे में’ मुलाकात के बाद संघ की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया गया।
संविदा नियुक्ति या “वसूली अधिकारी” की तैनाती?
CASA के कुछ पदाधिकारियों और जानकार सूत्रों का आरोप है कि संविदा नियुक्ति अब केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि “वसूली” और “राजनीतिक संरक्षण” का माध्यम बन चुकी है।
बेमेतरा जिले में वर्तमान में दो नियमित ADM पदस्थ हैं, जिनकी प्रशासनिक सेवा में दीर्घकालीन भूमिका है। लेकिन उन्हें दरकिनार कर एक संविदा अधिकारी को वित्त, राजस्व एवं अन्य शक्तिशाली विभागों का जिम्मा सौंप देना, कई सवाल खड़े करता है।
मुख्य सवाल जो अब खड़े हो चुके हैं:
जब जिले में पर्याप्त संख्या में सक्षम, प्रशिक्षित और नियमित अधिकारी उपलब्ध हैं, तो बार-बार एक ही रिटायर्ड अधिकारी को संविदा पर क्यों नियुक्त किया जा रहा है?
क्या संविदा नियुक्तियाँ अब पारदर्शिता से अधिक राजनीतिक संरक्षण और व्यक्तिगत लाभ का माध्यम बन चुकी हैं?
प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के मौलिक अधिकारों और भविष्य को नजरअंदाज़ कर संविदा अधिकारियों को प्रमुख जिम्मेदारी देना – क्या यह “सुशासन” की परिभाषा है?
क्या मुख्यमंत्री कार्यालय इस नियुक्ति की वैधता की गहराई से समीक्षा करेगा या इसे केवल ‘फाइल निपटाने’ की कार्यवाही मानकर आगे बढ़ा दिया जाएगा?
निष्कर्ष: संविदा प्रणाली की समीक्षा अब अनिवार्य
छत्तीसगढ़ में संविदा नियुक्तियों को लेकर जो सवाल उठे हैं, वे केवल एक जिले या एक अधिकारी तक सीमित नहीं हैं। यह मुद्दा अब प्रशासनिक पारदर्शिता, सेवा नियमों की पवित्रता और अधिकारियों के मनोबल से जुड़ चुका है।
राज्य सरकार को चाहिए कि संविदा प्रणाली की एक उच्चस्तरीय और निष्पक्ष समीक्षा कराए, ताकि भविष्य में नियमों की अनदेखी से न केवल बचा जा सके, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था में विश्वास भी कायम रह सके।

आइए इस तथ्य को विस्तार से समझते हैं:
⚠️ 86 स्वीकृत, 155 पदस्थ: कैसे और क्यों?
✅ स्वीकृत पद – 86:
यह वो संख्या है जिसे वित्त विभाग और GAD (सामान्य प्रशासन विभाग) ने बजट व जरूरतों के अनुसार औपचारिक रूप से स्वीकृत किया है। यानी, छत्तीसगढ़ में सिर्फ 86 अपर कलेक्टर की आवश्यकता और मंजूरी है।
❌ पदस्थ अधिकारी – 155:
इसका अर्थ है कि वास्तविकता में 86 के बजाय 155 लोगों को अपर कलेक्टर के रूप में कार्यभार दे दिया गया है, जिसमें नियमित, प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारी, और संविदा नियुक्त अधिकारी शामिल हैं।
🔍 इस स्थिति के गंभीर सवाल:
- 📌 क्या संविदा नियुक्ति नियमों का उल्लंघन है?
जब पहले से 86 की जगह 155 लोग पदस्थ हैं, तो संविदा पर और लोगों को नियुक्त करने का न तो तर्क है, न कानूनी औचित्य।
यह सीधे-सीधे सेवा नियमों और वित्तीय शुचिता का उल्लंघन है।
- 🧾 क्या यह वित्तीय बोझ नहीं है?
संविदा अधिकारी को हर महीने वेतन, भत्ता, वाहन, स्टाफ आदि सुविधाएँ मिलती हैं — और ये सब तब जब पद पहले से भर चुके हैं।
यह राज्य के राजस्व संसाधनों पर अतिरिक्त और अनावश्यक बोझ है।
- ⚖️ नियमित अधिकारियों के अधिकारों का हनन क्यों?
जब पद पहले से भर चुके हैं, तो नए अधिकारियों को अनुभव पाने का मौका नहीं मिल रहा।
कई अधिकारी वर्षों से बिना प्रमोशन के जमे हुए हैं, जबकि संविदा पर आए अधिकारी सीधे बड़े-बड़े विभागों का कार्यभार ले रहे हैं।
📢 इस पर CASA और राज्य सरकार को क्या करना चाहिए?
यह मांग करनी चाहिए कि संविदा पदस्थापना को तत्काल रोका जाए, जब तक सभी नियमित अधिकारी पदस्थ नहीं हो जाते।
🔹 राज्य सरकार को:
संविदा नियुक्तियों की समीक्षा के लिए उच्च स्तरीय समिति गठित करनी चाहिए।
यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी संविदा नियुक्ति तब तक न हो, जब तक कि सभी नियमित अधिकारियों को समुचित अवसर न मिल जाए।
