दैनिक मूक पत्रिका/जगदलपुर- बस्तर में होटल व्यवसाय को उद्योग का दर्जा देकर 45 प्रतिशत सब्सिडी देने के राज्य सरकार के फैसले पर बस्तर बेटा अधिकार मुक्ति मोर्चा ने कड़ी आपत्ति जताई है। संगठन के संयोजक नवनीत चांद ने इसे गरीब विरोधी और पूंजीपति समर्थक नीति बताया।

चांद ने कहा कि गरीब और पीड़ित लोगों को घर बनाने के लिए 5 लाख की राशि तक उपलब्ध नहीं कराई जा रही, लेकिन बड़े होटल व्यवसायियों को जनता की गाढ़ी कमाई को सब्सिडी बनाकर रेवड़ी की तरह बांटना पूरी तरह अनुचित है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने इस फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया तो मुक्ति मोर्चा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करेगा।

मुक्ति मोर्चा का कहना है कि होटल व्यवसाय में बस्तर के केवल 30 प्रतिशत स्थानीय युवा ही कार्यरत हैं, शेष रोजगार बाहरी राज्यों के लोग ले जाते हैं। ऐसे में स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देने का दावा खोखला साबित होता है। चांद ने यह भी सवाल उठाया कि बाढ़ आपदा में सब कुछ खो चुके ग्रामीणों को महज 1.20 लाख रुपये का मुआवजा दिया जा रहा है, जबकि होटल मालिकों का कर्ज चुकाने के लिए 45 प्रतिशत सब्सिडी का प्रावधान किया गया है।

उन्होंने आरोप लगाया कि यह योजना सीधे-सीधे बड़े सेठों और पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई गई है। चांद ने कहा कि बस्तर में पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर मोटल और रिजॉर्ट बनाए गए, लेकिन आज हालत यह है कि कई पर्यटन स्थलों तक जाने के लिए सही संकेतक तक उपलब्ध नहीं हैं।

मुक्ति मोर्चा का कहना है कि अगर सरकार को वास्तव में स्थानीय रोजगार और छोटे व्यवसायों को बढ़ावा देना है तो उसे मंझोले और छोटे कारोबारियों को अनुदान देना चाहिए। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि यह नीति केंद्र की तर्ज पर पूंजीपतियों को और मजबूत करने का जरिया है और नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र की परिस्थितियों का इस्तेमाल “आपदा में अवसर” की तरह किया जा रहा है।

चांद ने साफ कहा कि मुक्ति मोर्चा इस योजना का पुरजोर विरोध करेगा और जरूरत पड़ने पर जनहित याचिका के जरिए इसे न्यायालय में चुनौती दी जाएगी।

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