दैनिक मूक पत्रिका दंतेवाड़ा – दक्षिण बस्तर के अन्नदाता खेती किसानी के काम में पिछड़ गए हैं। सावन महीने में खेतों में दरारें पड़ गई है। जलाभाव के कारण किसान ना रोपा लगा पा रहे हैं, ना ही बिंयासी का काम। खाद- बीज की किल्लत के बाद अब बारिश की कमी किसानों की परेशानी का सबब बन गया है।
दंतेवाड़ा जिले के गीदम, कटेकल्याण, दंतेवाड़ा और कुआकोंडा ब्लॉक के 90 फीसदी किसान खेती के लिए प्रकॄति पर निर्भर हैं। सिंचाई की सुविधा बमुश्किल 10 फीसदी किसानों के पास ही है। 11 जुलाई से श्रावण मास शूरू हो गया है, लेकिन इलाके में कहीं- कहीं पर हल्की बूंदाबांदी को छोड़कर बारिश नहीं हो रही है। जबकि सावन- भादों के महीने में आमतौर पर नदी, नाले और खेत जलमग्न रहते हैं। इस साल किसान भाईयों के लिए खरीफ सीजन की शुरुआत से ही प्रतिकूल परिस्थिति का सामना करना पड़ रहा है। नवतपा के समय से बारिश शुरू हुई। यह दौर आषाढ़ के मध्य तक जारी रहा। खेतों में पानी भरे होने के कारण किसान खुर्रा बोनी नहीं कर पाए। इस समस्या के समाधान के तौर पर बुआई के लिए लेही तकनीक अपनाया। बुआई के लिए उपयुक्त माहौल नहीं मिलने से लगभग 50 फीसदी बीज खराब हो गया। अब ताजा हालात यह है कि बारिश के बिना खेतों में दरारें नजर आ रही है। थलेश ठाकुर के मुताबिक दक्षिण बस्तर में सिंचाई की सुविधा नहीं होने से किसान केवल बारिश में ही खेती करते हैं। इन दिनों मानसूनी गतिविधि कमजोर है। मौसम के दगाबाजी से किसान रोपा और बिंयासी के काम में पिछड़ गए हैं। ऐसे ही हालात रहा तो किसान भाईयों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
