सवालों के घेरे में पार्टी अनुशासन, भाजपा क्यों नजरअंदाज कर रही अपने ही आदेश?
दैनिक मूक पत्रिका सूरजपुर/प्रतापपुर – प्रतापपुर में सोमवार को हुआ धरना प्रदर्शन अब सिर्फ भ्रष्टाचार या विवादित सीईओ के खिलाफ आंदोलन नहीं रहा, बल्कि यह भाजपा के भीतर गहरे होते दरारों का खुला संकेत है। जनपद पंचायत कार्यालय में हुए ताला जड़ो आंदोलन में जनपद पंचायत अध्यक्ष सुखमनिया सिंह और सदस्य प्रेमावती पटेल तो मौजूद रहीं, लेकिन बाकी तस्वीर ने पूरे जिले की राजनीति को हिला दिया।

धरना किसका, भाजपा का या गुटों का?
धरने में नगर पंचायत प्रतापपुर के भाजपा शासित प्रतिनिधि, मंडल पदाधिकारी और कार्यकर्ता पूरी ताकत से मैदान में थे, लेकिन ग्राम पंचायतों के सरपंचों ने चुप्पी साध ली। यही नहीं, एक को छोड़ बाकी सभी जनपद पंचायत सदस्य भी गायब रहे। यह सवाल खड़ा करता है, जब मामला सीधे जनपद और विकास योजनाओं से जुड़ा है तो ये चुप्पी क्यों? क्या इन निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर दबाव है, या फिर यह सब किसी बड़े राजनीतिक खेल का हिस्सा है?
भाजपा बनाम भाजपा, सीईओ की कुर्सी या सत्ता की रस्साकशी?
सबसे बड़ा सवाल, भाजपा सरकार के फैसले के खिलाफ भाजपा के ही नेता धरने पर क्यों? क्या यह सिर्फ विवादित सीईओ जय गोविंद गुप्ता को हटाने का मामला है या फिर पर्दे के पीछे पूर्व सीईओ डॉ. नृपेंद्र सिंह को बचाने की कवायद? अगर हाँ, तो यह रिश्ता क्या कहलाएगा, निष्ठा, मजबूरी या साजिश?
सत्ता बनाम संगठन, गुटबाज़ी हुई बेनकाब
यह धरना भाजपा के भीतर खींचतान का साफ सबूत है। सवाल यह है कि क्या पार्टी लाइन से ऊपर निजी समीकरण और गुटबाज़ी हावी हो रही है? क्या स्थानीय नेतृत्व अपने स्वार्थ के लिए संगठन को चुनौती दे रहा है?
प्रशासन ने दो दिन में समाधान का भरोसा दिया है, लेकिन असली लड़ाई अब पार्टी मंच पर होगी। बड़ा सवाल, भाजपा ही भाजपा के फैसले को क्यों चुनौती दे रही है? क्या आने वाले दिनों में यह मामला राजनीतिक भूचाल में बदलेगा, या यह सिर्फ एक सीईओ की कुर्सी का खेल है?