आशीष कुमार कंठले मूक पत्रिका प्रधान संपादक का खास खबर —

छत्तीसगढ़, जिसे “धान का कटोरा” के रूप में जाना जाता है, एक कृषि प्रधान राज्य है, जहां की संस्कृति और परंपराएं गहरे रूप से खेती-किसानी और प्रकृति से जुड़ी हुई हैं। यहां के त्यौहार और पर्व न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं, बल्कि किसानों और उनके पशुधन के प्रति सम्मान और कृतज्ञता को भी व्यक्त करते हैं। इनमें से एक प्रमुख और लोकप्रिय पर्व है पोला, जो छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बड़े उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से किसानों और उनके बैलों के प्रति समर्पित है, जो खेती-किसानी में उनकी सबसे महत्वपूर्ण सहायता करते हैं।

 पोला छत्तीसगढ़ का एक पारंपरिक और सांस्कृतिक पर्व है, जो भाद्रपद मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से कृषि और पशुधन, विशेषकर बैलों की पूजा से जुड़ा है। छत्तीसगढ़ के अलावा, यह पर्व महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, और कर्नाटक जैसे राज्यों में भी विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। यह त्यौहार किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह उनकी मेहनत और पशुधन के योगदान को सम्मान देने का अवसर प्रदान करता है। पोला पर्व का मूल उद्देश्य खेती-किसानी में बैलों के योगदान को मान्यता देना और उनकी पूजा करना है।  यह छत्तीसगढ़ की सनातन परंपराओं और कृषि संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ है। बैल, जो खेती-किसानी में किसानों के सबसे बड़े सहायक हैं, इस दिन विशेष सम्मान के पात्र बनते हैं। यह पर्व मानसून के समापन और खरीफ फसल की बोआई के बाद मनाया जाता है, जो किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण समय होता है।

 पोला पर्व की तैयारियां कई दिन पहले से शुरू हो जाती हैं। 

पोला पर्व के दिन, सुबह से ही उत्साह का माहौल होता है।किसान अपने बैलों को नदी या तालाब में ले जाकर स्नान कराते हैं। इसके बाद बैलों को रंगों, कपड़ों, घुंघरू, घंटियों, और कौड़ियों से सजाया जाता है। उनके सींगों पर पॉलिश और रंग लगाए जाते हैं, और गले में आभूषण पहनाए जाते हैं। बैलों को विशेष भोजन, जैसे गुड़ और चावल का मिश्रण, खिलाया जाता है। जिनके पास बैल नहीं होते, वे मिट्टी या लकड़ी से बने बैलों की पूजा करते हैं। पूजा में चंदन का टीका, धूप, अगरबत्ती, और माला का उपयोग किया जाता है। घरों में महिलाएं पारंपरिक छत्तीसगढ़ी पकवान बनाती हैं, जैसे चीला, गुड़हा, अनरसा, सोहरी, चौसला, ठेठरी, खुरमी, बरा, मुरकु, भजिया, तसमई आदि। ये व्यंजन चावल, गुड़, तिल, और अन्य स्थानीय सामग्रियों से तैयार किए जाते हैं, जो छत्तीसगढ़ की पारम्परिक खाद्य संस्कृति को दर्शाते हैं।

बच्चों के लिए यह पर्व विशेष रूप से रोमांचक होता है। वे मिट्टी या लकड़ी से बने खिलौनों, जैसे बैल और रसोई के बर्तनों के साथ खेलते हैं।  कुछ क्षेत्रों में इस दिन बैल दौड़ प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, जो पर्व के उत्साह को और बढ़ाती हैं।

पोला पर्व का महत्व केवल धार्मिक या कृषि तक सीमित नहीं है; यह सामाजिक, सांस्कृतिक, और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। बैल खेती-किसानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी पूजा करके किसान अपनी समृद्धि और प्रगति के लिए आभार व्यक्त करते हैं। यह पर्व छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं को जीवित रखता है। बच्चों को मिट्टी के खिलौनों जैसे खेलों के माध्यम से अपनी संस्कृति और प्रकृति के महत्व का ज्ञान होता है। बैलों और प्रकृति की पूजा के माध्यम से यह पर्व पर्यावरण और पशुधन के संरक्षण का संदेश देता है। यह हमें हमारी जड़ों और प्रकृति के साथ जुड़ाव की याद दिलाता है।
आधुनिक युग में, जहां मशीनों ने खेती-किसानी में बैलों की भूमिका को कुछ हद तक कम कर दिया है, फिर भी पोला पर्व अपनी प्रासंगिकता बनाए रखता है। यह पर्व न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संजोता है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने पर्यावरण और पशुधन का सम्मान करना चाहिए। शहरी क्षेत्रों में भी यह पर्व छोटे स्तर पर मनाया जाता है, जहां लोग मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं और पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेते हैं।

By MOOK PATRIKA

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