केशकाल। बस्तर की धरती अपनी लोक संस्कृति और पारंपरिक तिहारों के लिए जानी जाती है। इन्हीं तिहारों में से एक है नवाखाई (नवखानी) पर्व, जिसे नई फसल की आहट के साथ आस्था, कृतज्ञता और उमंग से मनाया जाता है। आज ग्राम डोहलापारा अड़ेगा में बघेल परिवार द्वारा इस तिहार का भव्य आयोजन किया गया। खास बात यह है कि इस परंपरा को बघेल परिवार लगातार 22 पीढ़ियों से निभाता आ रहा है।
परंपरा का निर्वहन
सुबह से ही पूरे परिवार और गांव में उत्सव का माहौल था। परिवार के बुजुर्गों ने विधिवत पूजा-अर्चना कर भगवान, कुलदेवी और पूर्वजों को नई फसल अर्पित की। इसके पश्चात् सभी परिजनों ने नए धान से बने व्यंजन ग्रहण किए।
उत्सव की झलकियां
. परिवार के बुजुर्गों ने विधि-विधान से पूजा-अर्चना की।
. नए धान से बने पकवान, चावल और पारंपरिक व्यंजन सभी परिजनों व ग्रामवासियों के बीच वितरित किए गए।
. ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक गीतों की गूंज से पूरा गांव उत्सवमय हो उठा।
. युवा वर्ग ने भी बड़े उत्साह से भाग लिया और अपने पूर्वजों की परंपरा को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।
सांस्कृतिक संदेश
नवाखाई केवल फसल का उत्सव नहीं, बल्कि यह प्रकृति और अन्नदाता के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। यह तिहार बताता है कि अन्न केवल भोजन नहीं बल्कि ईश्वर का प्रसाद और किसान की तपस्या का फल है।डोहलापारा अड़ेगा का यह आयोजन बस्तर अंचल की सांस्कृतिक धरोहर का सशक्त उदाहरण है। बघेल परिवार द्वारा लगातार 22 पीढ़ियों से नवाखाई पर्व का निर्वहन इस बात का प्रमाण है कि परंपराएं समय के साथ और मजबूत होती जाती हैं। यह तिहार आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का संदेश देता है।
नवाखाई केवल फसल का उत्सव नहीं, बल्कि यह प्रकृति और अन्नदाता के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। यह तिहार बताता है कि अन्न केवल भोजन नहीं बल्कि ईश्वर का प्रसाद और किसान की तपस्या का फल है।डोहलापारा अड़ेगा का यह आयोजन बस्तर अंचल की सांस्कृतिक धरोहर का सशक्त उदाहरण है। बघेल परिवार द्वारा लगातार 22 पीढ़ियों से नवाखाई पर्व का निर्वहन इस बात का प्रमाण है कि परंपराएं समय के साथ और मजबूत होती जाती हैं। यह तिहार आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का संदेश देता है।